GODLY VERSIONS


"...जैसे बाप की स्थिति है वैसे बच्चों को स्थिति रखनी है..."


1969 |
01.
देही अभिमानी स्थिति


  • 18.01.1969
  • "...कोई भी हलचल न मन में, न तन में रहेगी।
  • जिसको ही बाबा कहते हैं देही अभिमानी स्थिति।
  • ...बाबा ने कहा -
      • सभी बच्चों को कहना कि अभी देही अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करो।
      • जितना सर्विस पर ध्यान है उतना ही इस मुख्य बात पर भी ध्यान रहे कि देही अभिमानी बनना है। ..."

     

    21.01.1969

    "...पहले तो वह (Brahma Baba) अपने को निरहंकारी, नम्रचित कहते हुए कई बच्चों को यह सुनाते थे कि मैं भी अभी सम्पूर्ण नहीं बना हूँ । मैं भी अभी निरन्तर देही अभिमानी नहीं बना हूँ । लेकिन आपने अपने अनुभव के आधार से तीन चार मास के अन्दर ध्यान दिया होगा, सन्मुख मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ होगा तो अनुभव किया होगा कि यह ब्रह्मा अब साकारी नहीं लेकिन अव्यक्त आकारी रूपधारी है । ..."


    25.01.1969

    "...देह के अभिमान से भी सम्पूर्ण समर्पण बने हो? मर गये हो वा मरते रहते हो? देह के सम्बन्ध और मन के संकल्पों से भी तुम देही हो । यह देह का अभिमान बिल्कुल ही टूट जाए ..."

     

    18.09.1969

    "...जब तुम याद में बैठते हो तो देह-अभिमान से देही-अभिमानी में कैसे स्थित होते हो? क्या कहते हो? बात तो बड़ी सहज है। जो आप सबने बताया वो भी पुरुषार्थ का ही है। लेकिन जानते और मानते हुए भी देह अभिमान में आने का कारण यही है जो देह का आकर्षण रहता है। इस आकर्षण से दूर हटने के लिए कोशिश करनी है। जैसे कोई खींचने वाली चीज होती है तो उस खिंचाव से दूर रखने के लिए क्या किया जाता है? चुम्बक होता है तो ना चाहते हुए भी उस तरफ खिंच आते हैं। अगर आपको उस आकर्षण से किसी को दूर करना है तो क्या करेंगे? कोई चीज ना चाहते हुए भी उसको खैचती है और आपको उस चीज से दूर उसे करना है तो क्या करेंगे? या तो उनको दूर ले जायेंगे या तो बीच में ऐसी चीज रखेंगे जो वो आकर्षण न कर सके। यह दो तरह से होता है या तो दूर कर देना है या दोनों के बीच में ऐसी चीज डाल देंगे तो वो दूर हो जाते इसी प्रकार यह देह अभिमान या यह व्यक्त भाव जो है यह भी चुम्बक के माफिक ना चाहते हुए भी फिर उसमें आ जाते है। बीच में क्या रखेंगे? स्वयं को जानने के लिए क्या आवश्यकता है जिससे स्वयं को और सर्वशक्तिमान बाप को पूर्ण रीति जान सकते हो? एक ही शब्द है। स्वयं को और सर्वशक्तिमान बाप को पूर्ण रीति जानने के लिए संयम चाहिये। जब संयम को भूलते हो तो स्वयं को भी भूलते और सर्वशक्तिमान को भी भूलते हैं। अलबेलेपन का संस्कार भी क्यों आता है? कोई न कोई संयम को भूलते हो। तो संयम जो है वो स्वयं को और सर्वशक्तिमान बाप को समीप लाता है। अगर संयम में कमी है तो स्वयं और सर्वशक्तिमान से मिलन में कमी है। तो बीच की जो बात है वह संयम है। कोई ना कोई संयम जब छोड़ते हो तो यह याद भी छूटती है। अगर संयम ठीक है तो स्वयं की स्थिति ठीक है और स्वयं की स्थिति ठीक है तो सब बातें ठीक है। तो यह देह की जो आकर्षण है वो बार-बार अपनी तरफ आकर्षित करती है। अगर बीच में यह संयम (नियम) रख दो तो यह देह की आकर्षण आकर्षित नहीं करेगी। ..."

     

    17.11.1969

    "...यहाँ भट्ठी में किस लिए आये हो? देह में रहते विदेही हो रहने के अभ्यास के लिये। जब से यहाँ पाँव रखते हो तब से ही यह स्थिति होनी चाहिए। जो लक्ष्य रखा जाता है उसको पूर्ण करने के लिए अभ्यास और अटेन्शन चाहिए। ..."

     

    अव्यक्त स्थिति
    कर्मातीत स्थिति
    लाइट माइट की स्थिति
    शक्ति रूप की स्थिति
    त्रिमूर्ति की स्थिति
    मन की स्थिति
    आकारी स्थिति
    अन्तर्मुख स्थिति
    सूक्ष्म स्थिति
    निराकारी, निरहंकारी, निरसंकल्प स्थिति
    महान् स्थिति
    बीजरूप स्थिति
    आन्तरिक स्थिति
    शारीरिक स्थिति
    प्रेम स्वरूप की स्थिति
    सम्पूर्ण स्थिति
    अन्तिम स्थिति
    वर्तमान स्थिति
    स्व-स्थिति
    फाईनल स्थिति
    आजकल की स्थिति
    स्तुति के आधार पर स्थिति
    बीच की स्थिति
    निशान-बाज की स्थिति
    निराकारी स्थिति
    एकरस स्थिति
    रूह की स्थिति
    रूहानी स्थिति
    अन्तिम सम्पूर्ण स्थिति
    आत्म-स्थिति
    निराकारी और न्यारी स्थिति
    स्व-स्थिति
    स्वयं की स्थिति
    आत्म-स्थिति
    ऊंची स्थिति
    योग की स्थिति
    आत्मिक स्थिति
    एकरस स्थिति
    जब जैसे चाहे वैसी स्थिति
    रूहानी स्थिति
    आन्तरिक स्थिति
    अलौकिक स्थिति
    स्वस्थिति

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

1971

00.00.1971

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